भटके नास्तिक युवकों के लिए सन्देश


जीव विज्ञान जहाँ समाप्त होता है, वहाँ भौतिक विज्ञान प्रारम्भ होता है, जहाँ भौतिक विज्ञान समाप्त होता है, वहाँ वैदिक भौतिकी का प्रारम्भ होता है और जहाँ वैदिक भौतिकी समाप्त होती है, वहाँ वैदिक अध्यात्म-विज्ञान प्रारम्भ होता है। डार्विन-विकासवाद के समर्थकों को जीव विज्ञान से आगे सोचने का प्रयास करना चाहिए, तभी उन्हें अपने नेचुरल सलेक्शन व रेण्डम परिवर्तन का मिथ्यापन अनुभव हो पायेगा। नेचुरल सलेक्शन की रट लगाने वाले नेचर को परिभाषित नहीं कर सकते। वे नहीं जानते कि एक ही शब्द की मिथ्या रट लगाने से वह शब्द सत्य नहीं बन जाता। इसके नियमों के तर्क देने वाले चेतन नियामक सत्ता को स्वीकार नहीं करते। वे यह भी नहीं बताते कि यह नेचुरल सलेक्शन क्या कोई जादू है अथवा कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया है? यदि यह कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया है, तो उसके क्रियाविज्ञान को क्या वे समझते हैं? रेण्डम से कोई भी प्रक्रिया बिगडती ही है, बनने की सम्भावना तो नगण्य ही होती है। डी.एन.ए. की बात करने वाले उसकी संरचना तथा उसके मूल अवयव, जो वास्तव में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के मूल अवयव हैं, के विषय में कुछ नहीं सोचते। बड़े-2 भौतिक वैज्ञानिक इन मूल कणों, फोटोन्स, स्पेस वा कथित स्ट्रिंग्स आदि की संरचना को नहीं समझ पाये हैं, ऐसी स्थिति में जीव विज्ञान की कुछ जानकारी रखने वाला कथित विकासवादी ईश्वर व जीवात्मा के अस्तित्व को नकारता है, यह न केवल नादानी है, अपितु मिथ्या दुराग्रह एवं बौद्धिक दासता भी है।

ये भटके युवक स्वयं कोई प्रयोग नहीं करते परन्तु कुछ वैज्ञानिकों के पूर्व में किये शोध को ही प्रमाण मान लेते हैं। इसके विपरीत बोलने वाले वैज्ञानिक उनके लिए प्रमाण नहीं हैं। ये नास्तिक युवक सोचते हैं कि डार्विन के सिद्धान्त को वे ही अच्छी तरह समझते हैं, डार्विन से असहमत वैज्ञानिक मूर्ख हैं। हजारों वर्ष पूर्व ऋषियों के अनुसंधान उनके लिए कल्पना है। मेरे भटके युवको! मैंने ऋषियों व वेदों के विज्ञान को कुछ अंशों में खोजा है। जो स्वयं को बड़ा वैज्ञानिक विचारक मानते हैं, वे मेरा ‘वेदविज्ञान-आलोकः’ ग्रन्थ पढ़ कर देखें, उनके मस्तिष्क की पूर्ण परीक्षा हो जायेगी। जो ग्रन्थ नहीं खरीद सकें, वे ‘वेदविज्ञान-आलोकः’ की कक्षा के वीडियोज् देख कर ही अपनी बुद्धि को तोल सकते हैं। उसके पश्चात् ही वे मुझसे संवाद करने के अधिकारी हैं। मैं भारत के प्रसिद्ध भौतिक वैज्ञानिकों से पिछले लगभग 14-15 वर्षों से संवाद करता रहा हूँ, कुछ विदेशीयों से भी। इस कारण मैं ऐसे भटके युवकों, जिनकी न अपनी कोई दृष्टि है और न सिद्धान्त, बल्कि जिनके पास थोड़ा कुछ है, वह भी उधार का है तथा जो प्रत्यक्ष चर्चा से घबराते हैं, के साथ वीडियों संवाद में समय व्यर्थ नहीं कर सकता। इन युवकों को इतना भी ध्यान नहीं है कि विश्व में वैज्ञानिकों के मध्य होने वाली काॅन्फ्रेंस एवं सेमिनार प्रत्यक्ष चर्चा के साधन हैं, दूर बैठकर सोशल मीडिया के माध्यम से कभी सत्य के निर्णय नहीं होते हैं। जिनके पास अन्य कोई काम नहीं होता, वे ही केवल सोशल मीडिया के शूरमा बने रहते हैं। मेरा ध्यान संसार के महान् भौतिक वैज्ञानिकों को सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को जानने का महान् वैदिक विज्ञान देना है, इससे डार्विन का विकासवाद तो स्वतः धराशायी हो जायेगा।
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