यदि हिन्दू अब भी नहीं जागे तो...
आज विश्व का परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। कहीं दो राष्ट्रों अथवा राष्ट्र के समूहों के मध्य युद्ध हो रहे हैं, कहीं साम्प्रदायिक कट्टरवादी सोच खूनी तांडव कर रही है, तो कहीं कुछ सभ्य कहलाने वाले राष्ट्र इस तांडव को हवा दे रहे हैं। अमेरिका ने सदा से ही इस विश्व में अस्थिरता फैलाने का खेल खेला है। इसी ने कई देशों को बर्बाद किया है और कर भी रहा है। इसी ने अपने स्वार्थ के लिए आतंकवादियों को पैदा किया है, तो कहीं उन्हें पोषित किया है। उसका एकमात्र उद्देश्य अपने हथियारों को बेचना है। अमेरिका और चीन से प्रोत्साहित होकर एवं अपनी स्वाभाविक मजहबी कट्टरता के कारण आज पाकिस्तान दिवालिया हो चुका है, उसके नागरिक भूखे मर रहे हैं। उनके पास चिकित्सा के समुचित संसाधन नहीं हैं, पीने को पर्याप्त पानी नहीं है। वह कर्ज में लगातार डूबने के कारण चीन के हाथों बिक चुका है। परन्तु फिर भी कभी चीन, तो कभी अमेरिका के बल पर एवं अपने कट्टरपंथी मौलवियों के मिथ्या विश्वास पर विनाश के पथ पर जाते हुए भी अपने नागरिकों को मजहबी कट्टरता एवं भारत के प्रति विष घोलने की जन्मजात प्रवृति की घूँटी पिलाता रहता है। वहाँ का अनपढ़ और भोला जनमानस उस घूँटी को पीकर भूखे मरते हुए भी जन्नत की हूरों और मेवों की मिथ्या कल्पना में डूबा आतंकवादी अथवा उनका समर्थक बन रहा है। अफगानिस्तान को भी इसी प्रकार बर्बाद किया गया और आज वे ही वहाँ शासन कर रहे हैं, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ कभी ख़तरनाक अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी कहता था। जहाँ शासक इस प्रवृति के हों, उस देश की जनता का क्या हाल होगा, इसकी सहज कल्पना की जा सकती है। इन देशों में न तो मानवाधिकार संगठन जाने का साहस कर पाते हैं और न अंतर्राष्ट्रीय कानून काम करता है। वहाँ केवल मजहबी कट्टरता का शासन चलता है, जहाँ छोटे-छोटे बच्चों और महिलाओं का जीवन नर्क से भी दुःखद बन जाता है।
आज हमारे मित्र पड़ोसी राष्ट्र बांग्लादेश की स्थिति से हम भलीभाँति अवगत हैं। भारत के प्रति सदैव मैत्रीभाव रखने वाली एवं बांग्लादेश के जनक शेख़ मुजीबुर रहमान की बेटी शेख हसीना को अपना देश छोड़ने के लिए विवश किया गया। अपने ही देश के जनक की प्रतिमा को तोड़ा गया। बहाना केवल आरक्षण था, परन्तु हज़ारों हिन्दुओं का नरसंहार किया गया, महिलाओं के साथ दुराचार किया गया, छोटे-छोटे बच्चों को क्रूरतापूर्वक मारा गया, हिन्दुओं के मन्दिरों को आग के हवाले किया गया। क्या यह आन्दोलन है? इतना होने पर भी सारा संसार मौन है। सारे संसार का स्वयं को सम्राट् समझने वाला अमेरिका भी मौन है। जो यूरोपीय देश कई बार भारत जैसे देश को भी मानवाधिकार का उपदेश करने की चेष्टा करते हैं, उन्हें बांग्लादेश में हिन्दुओं का नरसंहार दिखाई नहीं दे रहा। ये तो विदेशों की बात हुई, परन्तु आश्चर्य तो इस बात का है कि भारत का लगभग सम्पूर्ण विपक्ष हिन्दुओं के नरसंहार पर न केवल चुप्पी साधे हुए है, अपितु कोई-कोई प्रसन्न भी है। यदि भारत का कोई विपक्षी नेता सार्वजनिक रूप से यह कहता है कि भारत में भी बांग्लादेश जैसा हो सकता है, तब क्या देश के सौ करोड़ हिन्दुओं को इन पार्टियों से अपने वोटों का हिसाब नहीं माँगना चाहिए? क्या उन्हें इन नेताओं के विरुद्ध एफ.आई.आर. नहीं करानी चाहिए?
हमारे कुछ नेता पाकिस्तान में जाकर चुनी हुई मोदी सरकार को हटाने के लिए उसकी सहायता माँगते हैं। एक नेता चीन और भारत के मध्य गम्भीर तनाव की स्थिति में भी चीनी राजदूत से चुप मिलते सुना जाता है, तो यह भी सुना जा रहा है कि बांग्लादेश में हुए सत्ता परिवर्तन और हिन्दुओं के नरसंहार के पीछे भी एक भारतीय नेता की भी भूमिका है। इतना सब होने के उपरान्त भी भारत सरकार असहाय क्यों है? जिन राजनैतिक दलों की जीत पर भारत के शत्रु उस पाकिस्तान देश के जिन्दाबाद के नारे लगते हो, जो स्वयं भूखा और नंगा है और जिसने भारत पर कितने ही युद्ध थोपे हैं, जो लगातार आतंकवादियों को भारत ही नहीं, अपितु विश्व में भेजकर मानवता की हत्या करता रहा है। उस देश के समर्थक नेता वा कार्यकर्त्ता भारत में रह कैसे सकते हैं? क्या हमारे कानून और संविधान इतने कमजोर और बेबस हैं? यदि ऐसा है, तो सबसे पहले इन्हें ही सुधारना चाहिए। भारत के टुकड़े करने के नारे लगाने वाले, भारतीय महापुरुषों और सनातन धर्म को गाली देने वाले, भारतीय परम्पराओं का उपहास करने वाले और आतंकवादियों का खुला समर्थन करने वाले, क्या इसीलिए बच जाएँ कि वे किसी राजनैतिक पार्टी के नेता वा कार्यकर्त्ता हैं अथवा वे किसी विश्वविद्यालय के छात्र, शिक्षक, मीडियाकर्मी तथा सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं अथवा वे जनबल, धनबल और बाहुबल से संपन्न हैं? तो ऐसे कानून की चिता जलाने के लिए प्रत्येक देशभक्त को तैयार रहना चाहिए।
आज देश में तथाकथित सेक्युलरिज्म का कैंसर अन्तिम चरण में है, जो देश की सम्पूर्ण संस्कृति, सभ्यता, धर्म और इतिहास को मिटाने के लिए तत्पर है। उस तथाकथित सेक्युलरिज्म की परीक्षा भारत सरकार को क्यों नहीं करनी चाहिए? वास्तविक सेक्युलरिज्म तो वह है, जहाँ पंथ, मत व मजहब के नाम पर सरकारी कानूनों में कोई भेदभाव न हो, सबको अपना प्रचार करने की स्वतन्त्रता हो, परन्तु यदि किसी की स्वतन्त्रता अन्य किसी की स्वतन्त्रता पर आक्रमण करने वाली हो, तब ऐसी विनाशकारिणी स्वतन्त्रता को कदापि स्वीकार नहीं किया जा सकता। एक मजहब कहता है कि हमें बलि/कुर्बानी के लिए पशुओं, यहाँ तक कि गायों को मारने की स्वतन्त्रता है, क्योंकि हमारे मजहब में लिखा है। उनकी इस तथाकथित स्वतन्त्रता का न कोई कानून विरोध करता है और न कोई पशु-पक्षी प्रेमी सामने आता है, बल्कि उन्हें पशुओं को मारने पर बधाई और शुभकामनाएँ दी जाती हैं। इस त्यौहार को भाईचारा बढ़ाने वाला बताया जाता है। यदि अपनी-अपनी पुस्तकों में लिखी हुई बातों को यथावत् मानने की छूट दी जाये, तब वेद में तो किसी व्यक्ति, गाय, घोड़ा आदि पशु को मारने वाले को शीशे से मारने का विधान है। तब क्या हिन्दुओं को यह अधिकार आज का सेक्युलरिज्म देगा? क्या हमारा संविधान हिन्दुओं के धर्म ग्रन्थों में दी हुई शिक्षाओं को सीमित या प्रतिबन्धित करने एवं कुरान की शिक्षाओं को यथावत् लागू करने के लिए ही बना है? यदि इसीलिए ही बना है, तब यह संविधान देश के सौ करोड़ हिन्दुओं को दण्ड देने वाला तथा सेक्यूलर नहीं, बल्कि हिन्दू विरोधी व साम्प्रदायिक ही माना जाएगा। जो लोग स्वयं को सेक्युलर कहते हैं, वे समान नागरिक संहिता कानून की बात सुनते ही छाती कूटने लगते हैं। उन्हें अल्पसंख्यकों के लिए अलग कानून चाहिए, चाहे वे कानून देश के बहुसंख्यक समाज के लिए कितने ही घातक क्यों न हो।
आज तो संसद में फिलिस्तीन की जय बोलने वाले, पाकिस्तान और आतंकवादियों का समर्थन करने वाले, गौ मांस खाकर हिन्दुओं की भावनाओं को आहत करने वाले, भारतीय इतिहास को मिटाने वाले, सनातन धर्म को डेंगू और मलेरिया कहने वाले, हमारे आदर्श मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को काल्पनिक बताने वाले, भगवती उमा और देवी सीता जैसी सती तथा विदुषी माताओं पर अश्लील व्यंग्य करने वाले, विदेशी आक्रान्ताओं को महान् बताने वाले, अपने विद्यालय में आतंकवाद और कट्टरता की शिक्षा देने वाले सभी सेक्युलर कहलाते हैं। उधर देश का गौरव बढ़ाने वाले इतिहास की महिमा गाने वाले, इसी देश की परम्पराओं में पले और बढ़े तथा विदेशी आक्रान्ताओं के साथ संघर्ष करते हुए अपने प्राणों का बलिदान करने वाले, भारत माता की जय बोलने वाले, क्रान्तिकारियों का प्रिय गीत वन्देमातरम् गाने वाले, विदेशी घुसपैठियों को बाहर निकालने की माँग करने वाले एवं सबके लिए समान कानून बनने की माँग करने वाले आज साम्प्रदायिक कहे जा रहे हैं। यह कैसा न्याय है? क्या इस बात पर कभी कोई विचार करेगा?
आज हम भारत सरकार से विनम्र निवेदन करना चाहते हैं कि इस देश में इस मिथ्या सेक्युलरिज्म को बलपूर्वक नष्ट करके सच्चे सेक्युलरिज्म की स्थापना करे, जहाँ जाति और मजहब के नाम पर किसी भी प्रकार का भेदभाव न होवे। बांग्लादेश में हिन्दुओं पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए तुरन्त जो भी उचित हो निर्णायक कार्यवाही करें और जो नेता यहाँ बांग्लादेश बनाना चाहते हैं, हमास पर इजरायल के हमले पर आँसू बहाते और बांग्लादेश में हिन्दुओं के नरसंहार पर मौन रहते हैं, पाकिस्तान और चीन से गुप्त मन्त्रणा करते हैं, उनकी तुरन्त गहनता से जाँच होनी चाहिए। उनकी विदेश यात्राओं और विदेश से मिलने वाले धन की भी गहराई से जाँच होनी चाहिए और दोष सिद्ध होने पर उन्हें कठोर से कठोर दण्ड देना चाहिए। अब मीरजाफरों को पालने का खेल बन्द होना चाहिए।
हमारे देश ने पूर्व में भी अनेक मीरजाफरों का दंश झेला है। इन्हीं के कारण हमारे देश के टुकड़े हुए, पाकिस्तान के अधिकांश हिन्दू मारे गए अथवा विधर्मी हो गए। अब बांग्लादेश में भी यही हो रहा है। कश्मीर में भी यही हुआ। केरल और पूर्वोत्तर राज्यों में भी हिन्दुओं की स्थिति गम्भीर है। जनसंख्या असंतुलन तेजी से बढ़ रहा है, फिर भी ये तथाकथित सेक्युलरवादी मौन हैं। क्या ये लोग पुनः देश के विभाजन की योजना तो नहीं बना रहे हैं? इस देश में भी यदि कोई साम्प्रदायिक दंगा हुआ अथवा गृहयुद्ध हुआ, तो ये तथाकथित सेक्युलरवादी मुसलमानों की मृत्यु पर शोक और हिन्दुओं की मृत्यु पर या तो मौन रहेंगे या प्रसन्न होंगे। अब देश के सौ करोड़ हिन्दुओं को नींद से जागकर उन चेहरों को पहचानना चाहिए, जो आज बांग्लादेशी हिन्दुओं के नरसंहार पर मौन हैं अथवा प्रसन्न है। सरकारें आयेंगी और जायेंगी, राजनैतिक दल बनेंगे और टूटेंगे, परन्तु आपको बचाने कोई तभी आयेगा, जब आप संगठित होंगे। यदि आप जातीय अहंकार, छुआछूत एवं आरक्षण के नाम पर बँटते व लड़ते रहे, तो आपको कोई नहीं बचा पायेगा, यह निश्चित है।
जरा विचारो कि बांग्लादेश में कट्टरपंथी क्रूर लोगों ने किसी तथाकथित जाति विशेष को निशाना नहीं बनाया, बल्कि हर हिन्दू वा गैर मुस्लिम उनके निशाने पर था। ऐसा ही भारत विभाजन के समय हुआ था। ऐसी स्थिति में आप अपने जातीय रोग को कब तक ढोते रहेंगे? आज जातिवाद बढ़ाने के लिए हर राजनैतिक दल उत्तरदायी है। आप यह भी ध्यान रखें कि आपको अपनी रक्षा स्वयं करनी होगी, केवल पुलिस और सेना के भरोसे रहना आत्मघाती मूर्खता होगी। अब आपको सोचना है कि आप अपनी रक्षा कैसे कर सकते हैं? कैसे आप अपने जातीय भेदभावों को भुलाकर के एक होकर अपने राजनेताओं तथा कट्टरपंथियों को मुँहतोड़ उत्तर दे सकते हैं? देश की सुरक्षा के लिए सरकार को चाहिए कि देश की सीमाओं पर 10km की सीमा तक सुरक्षा पट्टी बनाने के लिए गाँवों को खाली करवाया जाए और वहाँ सशस्त्र भूतपूर्व सैनिकों को बसाया जाए। देश के सभी मज़हबों के पूजा स्थलों पर गुप्त छापा मारकर पता लगाया जाए कि कहीं कोई अस्त्र-शस्त्र तो एकत्र नहीं कर रहा है और कहीं कोई देशद्रोही गतिविधियाँ तो नहीं चला रहा है? यदि ऐसा पाया जाता है, तो उन पूजा स्थलों के विरुद्ध योगी जी की रणनीति के अनुसार काम किया जाये। इसी प्रकार इस बात की भी जाँच की जाए कि हिन्दू बहुल क्षेत्रों में अल्पसंख्यक किस प्रकार रहते हैं और जहाँ हिन्दू अल्पसंख्यक है, वह वहाँ किस प्रकार रहता है? कौन दंगों की पहल करता है और कौन आत्मरक्षा के लिए हथियार उठाता है? इसका भेद जानना भी अनिवार्य है। आज जो तथाकथित धर्माचार्य हिन्दुओं को सनातन वैदिक धर्म से दूर करके नाना मिथ्या मत पन्थों के अन्धविश्वासों, पाखण्डों एवं गुरुडम में फँसाकर बौद्धिक रूप से कमजोर कर रहे हैं, उनसे भी सतर्क रहना होगा। हमें सभी प्रकार से स्वयं को शक्तिशाली व संगठित बनाना होगा, अन्यथा विनाश हमारे द्वार पर खड़ा दिखाई देगा।
-आचार्य अग्निव्रत
संस्थापक प्रमुख, श्री वैदिक स्वस्ति पन्था न्यास