हमने इस्लामी आक्रान्ताओं के खूनी खेल देखे, हमने अंग्रेजों का बर्बर अत्याचार देखा। हम पिटे, मरे, जेलों में सड़े, परन्तु फिर भी नहीं सुधरे। हमारे ही कुछ धूर्त भाई विदेशी दुष्टों के दलाल व जासूस बने। अल्प स्वार्थ के लिए देश को विदेशियों का दास बना दिया। आज विदेशों की जासूसी व दलाली का घृणित रूप हमारे पढ़े लिखें मूर्खों (बौद्धिक दास) में पुनः उभर रहा है। उनकी भारत व भारतीयता से घृणा सड़कों पर देशद्रोह का खुला खेल खेल रही है। केन्द्र सरकार दुर्बल सिद्ध हो रही है, देशभक्त सो रहे हैं, देशद्रोही हुडदंग कर रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि पुनः यह देश विदेशी दासता के जाल में फसने जा रहा है।
मेरे देशवासियो! यदि आपको पुनः विदेशियों की मार नहीं खानी है और जरा भी आत्मसम्मान आपमें बचा है, तो एक होकर इस भारत को बचा लो, अन्यथा रोने के अतिरिक्त कुछ हाथ नहीं लगेगा।
- आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक
3 comments:
सच कहा आचार्य आपने । मै समस्त भारतवासियों की तो नहीं पर अपनी गारंटी लेता हूँ कि जहाँ कहीं भी राष्ट्र और सनातन धर्म के प्रति एकता कि आवश्यकता होगी मै वहाँ मौजूद रहूँगा ।
आचार्य जी विदेशियों से इतनी घृणा क्यों वास्तविकता में विदेशी भी तो परमपिता परमात्मा की संतान है और जो भारत में अपने ही अपने स्वार्थ के कारण अपनों की हानि कर रहे हैं उनके प्रति इतनी घृणा क्यों नहीं??
बात तो तर्कसंगत है आपकी,लेकिन लेख को ध्यान से पढ़कर देखो।आचार्य जी ने भूतकाल को ध्यान में रखकर विदेशियों की निंदा की है,,,और वर्तमान को ध्यान में रखकर देश के अंदर छुपे गद्दारों के बारे में राय रखी है।।लेख तो पढ़ लिया करो ध्यान से
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