मूर्खता अथवा षड्यन्त्र?



आजकल तिल का तेल निकालने हेतु बैल के स्थान पर मोटरसाईकिल के प्रयोग को कानूनसम्मत एवं अहिंसक बताया जा रहा है। यह हमारे अभागे देश के कानून और कानूनवेत्ताओं की मूर्खता का परिचायक है। जब कोल्हू, हल एवं बैलगाड़ी में बैलों का उपयोग करना बन्द हो जायेगा, तब क्या बैलों को कानून के रखवाले पालेंगे अथवा वे बैल सड़कों, गलियों वा खेतों में भूखे-प्यासे भटकने को विवश होंगे? जो सभी जगह लाठियां खाते घायल होते रहेंगे। तब कसाई लोग ऐसे बैलों को बूचड़खानों में ले जायेंगे, जहाँ उनका निर्मम वध होगा। उन कसाइयों को सरकार अनुदान देगी, ताकि वे अधिक से अधिक पशुओं को मार कर मांस उत्पादन कर सकें। आश्चर्य है कि किसान अथवा मजदूर बैल आदि पशु से काम ले, तो पशुक्रूरता निवारण अधिनियम आकर उसे रोकता है और जब बड़े-बड़े अरबपति कसाई बूचड़खाने में एक-एक दिन में लाखों पशुओं का खून बहाएं, तो उन्हें अनुदान मिले और पशुक्रूरता निवारण हेतु बनाया कानून कोई काम न आए। यह क्या बुद्धिमानों का कानून हो सकता है? क्या किसान व मजदूर के विनाश तथा कसाइयों के उत्कर्ष के लिए यह कानून नहीं है? अथवा क्या कसाइयों एवं पैट्रोलियम कम्पनीज् की मिलीभगत से देश के किसानों व मजदूर के समूल विनाश का यह घातक षड्यन्त्र तो नहीं है? यहाँ कोई पर्यावरणवादी भी नहीं बोलता है। 

आजकल कुछ पर्यावरणवादियों को पशु भी पर्यावरण के लिए हानिकारक दिखाई देते हैं। सर्वत्र वेद, गौ एवं ऋषियों की सभ्यता व संस्कृति के विनाश का षड्यन्त्र चल रहा है, जिसे हमारे राष्ट्रवादी शासक भी नहीं समझा पा रहे है। जब पैट्रोलियम समाप्त हो जायेगा और बैल भी समाप्त हो जायेंगे, तब यह मानव स्वयं भूखा-प्यासा मर जायेगा। संसार के कृषि वैज्ञानिको! मैं आपको सचेत कर रहा है कि ट्रैक्टर आदि यन्त्रों पर आधारित कृषि एवं बीजों से छेड़छाड़ अन्ततः भूमि की उर्वरा शक्ति को नष्ट कर देगी, पर्यावरण को नष्ट-भ्रष्ट कर देगी, तब आपको मेरी चेतावनी अवश्य याद आयेगी परन्तु तब तक बहुत देर हो जायेगी? मैं मानवता वा राष्ट्रवाद के ध्वजवाहकों को भी चेतावनी दे रहा हूँ कि यदि गौ आदि पशुओं व भूमि की उर्वरा शक्ति को न बचाया गया, तो राष्ट्र व मानवता दोनों में से कोई भी नहीं बचेगा। वस्तुतः वेदविद्या बिना विपरीत बुद्धि होकर यह मानव जाति विनाश के पथ पर अग्रसर है।

- आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक

2 comments:

Unknown said...

हमारे समाज की विडंबना है कि आधुनिकता के नाम पर अपनी मूल विरासत का इस सीमा तक उपहास करते हैं और बौद्धिक होने का दंभ भरते हैं।

रवि चव्हाण said...

बहुत सुंदर 👍🙏

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