भगवान् महादेव शिव उपदेशामृत (1)



भूमिका-1

भगवान् महादेव शिव एक ऐतिहासिक महापुरुष थे, जो देव वर्ग में उत्पन्न हुए थे। कैलाश क्षेत्र इनकी राजधानी थी। आज श्रावणमास के प्रारम्भ से ही देश व विदेश के शिवालयों में पूजा, कीर्तन, कथाएं, शिवलिगं की अश्लील पूजा, जो शिवपुराण में वर्णित दारुवन कथा पर आधारित है तथा इस कथा को कोई सभ्य व सुसंस्कृत महिला वा पुरुष सुन भी नहीं सकते हैं। शिवलिंग पर दूध चढ़ाना, जो बहकर नालियों में जाकर पर्यावरण को प्र्रदूषित करता है, क्या सच्ची पूजा का स्वरूप है? कहीं आम्ररस का अभिषेक ग्रीष्म ऋतु में करते देखा व सुना है? आश्चर्य है कि भगवान् शिव के इस अभागे राष्ट्र में करोड़ों बच्चे वा बूढ़े भरपेट रोटी के लिए तड़पते हों, उस देश में इस प्रकार से दूध बहाना क्या स्वयं उन भूखे नर-नारियों के साथ स्वयं भगवान् शिव का अपमान नहीं है? कितने शिवभक्त भगवान् शिव के विमल व दिव्य चरित्र, शौर्य, ईश्वरभक्ति, योगसाधना एवं अद्भुत ज्ञान-विज्ञान से परिचित हैं? यह आप स्वयं आत्मनिरीक्षण करें। भगवान् शिव कैसे थे, उनकी क्या प्रतिभा थी, उनके क्या उपदेश थे, यह जानने-समझने का न तो किसी के पास अवकाश है और न समझ। इस कारण हम आज से सम्पूर्ण श्रावण मास तक एक श्रंखला के रूप में उनके गम्भीर उपदेशों व ज्ञान विज्ञान को महाभारत ग्रन्थ के आधार पर प्रस्तुत करना प्रारम्भ कर रहे हैं। यह वर्णन भीष्म पितामह के उन उपदेशों, जो उन्होंने शरशय्या पर धर्मराज युधिष्ठिर को दिए थे, में मिलता है। आज यह बड़ी विडिम्बना है कि पौराणिक (कथित सनातनी) भाइयों ने भगवत्पाद महादेव शिव को अत्यन्त अश्लील, चमत्कारी व काल्पनिक रूप में चित्रित किया है, जबकि आर्य समाजी बन्धुओं ने मानो उन्हें कचरे पात्र में फेंक दिया है। ऐसे में उनका यथार्थ चित्रण संसार सम्मुख नितान्त ओझल हो गया है।

पौराणिक बन्धु धर्म नाम से प्रचालित विभिन्न मान्यताओं व कथाओं को बुद्धि के नेत्र बन्द करके अक्षरशः सत्य मान लेते हैं और कोई मिथ्या बातों का खण्डन करे, तो उसे हिन्दूविरोधी कह कर झगडे़ को उद्यत रहते हैं। वे यह भी नहीं सोचते कि मिथ्या कथाओं व अंधविश्वासों के कारण इस भारत और हिन्दू जाति की यह दुर्गति हुई है, भारत का इतिहास और ज्ञान-विज्ञान नष्ट हुआ है, भारत सैकड़ों वर्षों तक विदेशियों का दास रहा है। उधर आर्य समाजी बन्धु बिना गम्भीर चिन्तन व स्वाध्याय के पुराणों के साथ साथ महाभारत, वाल्मीकि रामायण की भी सभी अथवा अधिकांश बातों को गप्पें मानकर खण्डन करने में तत्पर रहते हैं, भले ही उन्हें महादेव, ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र जैसे भगवन्तों को ही भूलने का पाप क्यों न करना पड़े, वे खण्डन करने को ही आर्यतव समझ लेते हैं। व नहीं सोचते कि यदि मिथ्या कथाओं का खण्डन करना है, तो इन देवों का सत्य इतिहास तो जाना व जनाया अनिवार्य है।

पाठकों से आग्रह है कि वे इन्हें पढ़ें, विचारें तथा उन पर आचरण करके वास्तविक शिवभक्त बनने का प्रयास करें। ईश्वर हम सबको ऐसा सच्चा शिवभक्त बनने की बुद्धि व शक्ति प्रदान करें, यही कामना है।

- आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक

2 comments:

Pravesh Bhargava said...

Reading this blog is like, coming out from darkness and realising that without understanding the essence of our ancient vedas and rituals, we are acting look fools and unknowingly destroying our great culture.
Swami Agnivrat ji can I share this blog with my friends and family?
looking forward for your kind permission.

Anonymous said...

आचार्य जी अब पोस्ट क्यों नही लाख रहे आप

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