सावधान! शेर को जीवित मत करो।


चार सिद्ध पुरुष जंगल में अपनी राह चले जा रहे थे। उन्हें मार्ग में एक बब्बर शेर का बिखरा हुआ कंकाल मिला। एक सिद्ध पुरुष बोला, मैं इस कंकाल को यथावत् जोड़ सकता हूँ और उसने जोेड़ कर दिखा भी दिया। कुछ वनवासी लोगों, जिन्होंने शेर को कभी देखा नहीं था, यह देख कर आश्चर्य व प्रसन्नता व्यक्त की। दूसरा सिद्ध पुरुष बोला कि मैं इस पर उपयुक्त मांस पेशियां व अन्य शरीरांगों को उत्पन्न कर सकता हूँ। यह सुनकर वनवासी लोग उत्सुक हो उठे, तब उस सिद्ध पुरुष ने ऐसा चमत्कार कर दिखाया। अब तीसरे सिद्ध पुरुष ने कहा कि मैं इसकी चमड़ी, आँख व पंजे आदि को बिल्कुल वास्तविक रूप में उत्पन्न कर सकता हूँ और उसने ऐसा करके भी दिखा दिया। इस पर तीनों सिद्ध पुरुष एक दूसरे की प्रशंसा करने लगे तथा वनवासी बन्धुओं ने उस शेर के शरीर को मनोरंजक का बहुत बड़ा साधन समझकर अति हर्ष का अनुभव किया। वे उससे खेलने लगे। तभी चैथे सिद्ध पुरुष ने कहा कि मैं शेर के इस शरीर में जान डाल सकता हूँ, इस पर सभी आश्चर्य करने लगे और उसकी क्षमता पर शंका करने लगे। इस पर वह सिद्ध पुरुष उस शरीर में जान डालने का अपना अभियान प्रारम्भ करने लगा। सभी सोच रहे थे, बहुत अच्छा रहेगा, शेर उछलता, कूदता, गर्जता अच्छा दिखाई देगा। किसी को शेर के खतरे का आभास नहीं था। सिद्ध पुरुष अपनी-2 सिद्धियों को प्रदर्शित करने के अहंकार में डूबे थे और वनवासी बन्धु अपने मनोरंजन की प्यास में। तभी उन वनवासियों में से एक अनुभवी वृद्ध ने दूर से पुकारा, ‘ओ! सिद्ध पुरुषो!’ अपनी सिद्धियों का इस प्रकार दुरूपयोग मत करो, इन पर अहंकार मत करो, अपने यश की कामना में अपनी तथा इन वनवासी अबोध जनों, जिन्होंने कभी शेर को देखा व जाना नहीं है, की मृत्यु को आमन्त्रित मत करो। शेर कोई गाय, बकरी अथवा भैंस नहीं है, जो इन्हें दूध देेगा और न यह खरगोश वा मोर है, जिससे इनका मनोरंजन होगा। शेर साक्षात्-मृत्यु का रूप है, इस कारण इसके शरीर में जान मत डालो, परन्तु उस वृद्ध वनवासी की हितकारी बात न तो चारों सिद्ध पुरुषों, जो अपनी प्रतिभा के मद में डूबे परन्तु वस्तुतः मूर्ख थे, ने सुनी और न मनोरंजन की तृष्णा के अबोध वनवासियों ने। शेर के शरीर में जान डाल दी। शेर तुरन्त गुर्राया और उन सिद्ध पुरुषों को मार कर खा गया और अनेक वनवासियों को घायल कर दिया, तो कुछ भाग गये।

हे विश्व के वैज्ञानिको! हे नाना तकनीकों के विशेषज्ञो! मैं जानना चाहता हूँ कि आप नयी-2 टैक्नोलाॅजी बना कर विश्व को चमत्कृत कर सकते हो, मनुष्यों को विलासी जीवन दे सकते हो और ऐसा करके आप अकूत यश व धन पा सकते हो। अनेक व्यवसायिक कम्पनीज् को व्यापार का बड़ा साधन दे सकते हो, परन्तु मेरे मित्रो! स्मरण रखो, अति टैक्नोलाॅजी वह जीवित खूंखार शेर है, जो सम्पूर्ण पर्यावरण को खा जायेगा, जल व वायु का गंभीर संकट उत्पन्न कर देगा, सभी प्राकृतिक संसाधनों को समाप्त कर देगा, प्राणिमात्र के प्राणों को संकट में डाल देगा, मानव मानवता से दूर होकर निरा हिंसक, स्वार्थी व कामी पशु बन जायेगा, रोजगार का संकट बढ़ कर युवापीढ़ी अराजक व अवसादग्रस्त हो जायेगी, स्थिति ऐसी बन जायेगी कि विश्व के बड़े-2 राजसिंहासनों को ध्वस्त करके पारस्परिक मारकाट, भुखमरी, लूट-मार जैसे अपराधों की बाढ़ आ जायेगी। इस लिए विज्ञान को प्राणियों की मौत का साधन बनाने से बचो।

हे विश्व के राजनेताओ! आप विकास के पागलपन में विनाश के ज्वालामुखी को मत जगाओ! मैं वृद्ध वनवासी की तरह आप सबको तथा विश्व के विकास के इच्छुक प्रत्येक मनुष्य को सचेत कर रहा हूँ। यदि इस चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया गया, तो बाद में पश्चाताप करने योग्य भी हम नहीं रहेंगे। इसलिए वैदिक मार्ग की ओर चलो, अपनी जीवन पद्धति बदलो, प्राकृतिक संसाधनों को पूरा का पूरा निगल जाने का पागलपन मत करो, तभी सब बचेगा अन्यथा सब भस्म हो जायेगा।

✍ आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक

1 comment:

Unknown said...

True sir. Technology has made our life simple but at the same time it has made us lazy. It first took bullock kart from us then our pet animals and now it is on the brink of taking our health from us. In early days no one used to go to gym but now we need to go to gym because hard work is out of our life. We have to stop it otherwise we will not be able to give bright future for our coming generations.

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