देशद्रोही की परछाई


देशद्रोही की परछाई
एक गिद्ध किसी सड़े-गले मृत जानवर को खा रहा था। उसने अपने पंख फैलाकर उस मृत शव को ढक रखा था। तब किसी पथिक ने उस गिद्ध से कहा, ‘‘हे गिद्ध! तुम संसार के निकृष्ट पक्षी हो, जो सड़े-गले शवों को खाते हो। अब यह बताओ कि तुमने इस सड़े मांस को अपने पंखों से क्यों ढक लिया है? इससे भी गन्दा और कौन सा पदार्थ है, जिससे इस शव को बचाना चाहते हो?’’ इस पर उस गिद्ध ने कहा- ‘‘हे पथिक! यद्यपि मैं एक अधम प्राणी हूँ, जो अपने पूर्वकर्मों का फल इस जन्म में भोग रहा हूँ परन्तु फिर भी मैं घरती के सर्वश्रेष्ठ प्राणी माने जाने वाले कई मनुष्यों से श्रेष्ठ हूँ। मैं परमात्मा द्वारा बनाए नियमोें का पालन करता हूँ। मैं अपने घर की रक्षा करता हूँं, उससे विश्वासघात नहीं करता। इधर कुछ मनुष्यों को देखो! जो ईश्वरीय नियमों को तोड़कर क्या-2 कुकर्म कर रहे हैं? वे अपनों तथा अपनी मातृभूमि के साथ कैसे-2 विश्वासघात कर रहे हैं? वे इस देश में रहकर भी शत्रु देश की प्रशंसा और अपने देश की निन्दा करते हैं, वे विदेशी आक्रान्ताओं व आतंकवादियों की प्रशंसा तथा अपने महान् पूर्वजों की निन्दा करते हैं। वे अपने देश के टुकड़े-2 करने के लिए घातक प्रयास करते अथवा ऐसा प्रयास करने वालों को प्रोत्साहित करते हैं, वे सत्ता के लिए अपनों का ही खून बहाने की घृष्टता करते हैं, वे मानव समाज को जाति व मजहबों में बांटकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते तथा स्वार्थहित कुत्ते के समान परस्पर लड़ने व लड़ाने में ही लगे रहते हैं। वे अपने ही रक्षक सैनिकों को अपमानित करते रहते हैं, वे अपनी संस्कृति व सभ्यता से घृणा करते हैं।


हे धरती के सर्वश्रेष्ठ कहाने वाले मानव! मैं ऐसे गद्दार व देशद्रोही कथित मानव से स्वयं को श्रेष्ठ मानता हूँ। यदि ऐसा कोई देशद्रोही इधर से गुजरे, तो उसके पैर की घूल उड़कर इस सड़े-गले मांस पर न गिर जाये अथवा उस देशद्रोही की परछाई मेरे इस भोजन पर न पड़े, इस कारण मैं इस अपने पंखों से ढककर खा रहा हूँ।’’

यह सुनकर उस बेचारे सज्जन पथिक ने अपना सिर लज्जा से नीचे झुका लिया और मन ही मन सोचने लगा कि वास्तव में यह अधम प्राणी सत्य कह रहा है परन्तु वह दुःखी हो उठा कि मेरे देश के देशद्रोही, जो स्वयं को बहुत बुद्धिमान् व प्रगतिशील मानते हैं, भला क्या लज्जित होंगे।


✍️ आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक

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