एक युवक अपनी विधवा माँ के साथ रहता था। उसके पिता की मृत्यु कुछ वर्ष पूर्व भाईयों के कलह में हो चुकी थी। कभी उसकी माँ सधवा थी तथा संसार में सर्वोच्च स्थान प्राप्त ज्ञान, विज्ञान, शक्ति व समृद्धि की प्रतीक थी। विधवा होने के उपरान्त भी माँ अपने पति की समृद्ध विरासत के बल पर उस युवक को पाल रही थी। तभी किसी बाहरी ठग व दुष्ट महिला ने उस विधवा से मित्रता का ढोंग करके उसके साथ रहने लगी। धीरे-2 उस विधवा को दुष्ट महिला ने बंधक बना लिया और उसका सारा धन लूट कर अपने घर भेेज दिया। उसने उस युवक को अपनी माँ से विमुख करके अपनी चमक दमक व चालाकी से मानसिक दास बना लिया। सब कुछ लूट कर वह किसी प्रकार अपने घर वापिस भी चली गयी परन्तु युवक अवश्य उस दुष्ट महिला की दासता में पागल हो गया। वह अपनी विधवा माँ को भूल ही गया। वह बंधक घर में ही पड़ी परन्तु वह युवक उस दुष्ट महिला को ही माँ मानने लगा। उसका आचार-व्यवहार अपना लिया। उसी का जन्म दिन तथा उसके सम्बंधियों के जन्मदिन, पुण्यतिथि व अन्य पर्वों को धूमधाम से उन्हीं की विलासिता व प्रदूषित शैली के साथ मनाने लगा। इधर उसकी माँ बंधक बनी अपने कुपुत्र के व्यवहार को देखकर आँसू बहाती रहती और अपनी अन्तिम सांसे ले रही थी परन्तु वह कुपुत्र स्वच्छन्द जीवन जी रहा था, दूर बैठी उसी दुष्ट महिला के संकेतों पर मदारी के बन्दर की भाँति नाच रहा था। यदि उसका कोई संबंधी वा पड़ौसी उसे अपनी माँ को बंधन मुक्त करके सेवा करने तथा दुष्ट महिला से दूर रहने का परामर्श देता, तो वह उस परामर्शदाता को मूर्ख व पिछड़ा मानता और अपनी माँ को गालियां देता व सताता तथा उसे मूर्खा व दुष्टा कहकर सम्बोधित करता।
मेरे प्यारे देशवासियो! कहीं आप उस दिग्भ्रमित पागल युवक के मार्ग के पथिक तो नहीं बन गये हैं? यहाँ भी हमारी प्यारी माँ भारती पारिवारिक कलह महाभारत में वेदधर्म रूपी पति के मारे जाने से विधवा हो गयी थी। वैदिक धर्म का स्थान नाना मत मतान्तरों ने ले लिया था। इतना होने पर भी अर्थात् वेदधर्म से विमुक्त हो जाने पर भी यह विधवा हो चुकी माँ भारती शक्ति, विद्या, चरित्र व धन की दृष्टि से विश्व में सर्वोच्च स्थान प्राप्त थी। धीरे-2 विदेशी कुसभ्यताओं ने पैर जमाने प्रारम्भ किये, हूण, यवन, मुगल कितने ही आये और लूटते चले गये। इस्लामी कुसभ्यताओं ने इस भारती को पैरों तले रौंदा परन्तु फिर भी यह माँ भारती जैसे-तैसे जीवित भी रही और समृद्ध भी रही।
तभी इंगलैण्ड से अंग्रेजयित रूपी दुष्ट व क्रूर महिला चमक-दमक के साथ यहाँ अतिथि बनकर आयी और माँ भारती ने अतिथि को देव मानकर उसका स्वागत किया परन्तु धीरे-2 उस अंग्रेजयित ने माँ भारती को बन्धक बनाकर उसके पुत्र व पुत्रियों को कोड़ों, डंडों व गोलियों से यातनाएं दी और धीरे-2 वह दुष्ट अंग्रेजयित महिला शासक बन गयी। यहाँ से सोना, चाँदी, धनसम्पत्ति सब लूट-2 कर इंग्लैण्ड भेज दिया और उसका गरीब देश इंग्लैंड आर्थिक महाशक्ति बन गया। महर्षि दयानन्द सरस्वती से लेकर वीर सावरकर तक रानी लक्ष्मी बाई, मंगल पोण्डे, तात्यां टोपे, कुवंर सिंह, नेताजी सुभाष, लाला लाजपतराय, तिलक, भगतसिंह, स्वामी श्रद्धानन्द, बिस्मिल, अशफाक उल्ला, रोशनसिंह, हरदयाल, भाई परमान्द, राजगुरु, सुखेदव, चन्द्रशेखर आजाद आदि अनेकों क्रान्तिकारियों के कारण अंग्रेजी सत्ता को जाना भी पड़ा परन्तु वह सत्ता अंग्रेजयित को यहीं छोड़ गयी। माँ भारती के दो टुकड़े कर गयी, जाति व मजहबों में उसकी संतान को बांट कर खण्ड-2 कर गयी। आज विधवा माँ अपने ही घर में अंग्रेजयित की बंधक है। इस माँ भारती के पुत्र व पुत्रियां अंग्रेजयित पर पागल हैं। अपनी ही माँ भारती की पीड़ा को देखकर क्रूर परिहास करते हैं। अपने वैदिक धर्म रूपी पिता को भूल गये हैं, उसकी निन्दा करते हैं। माँ भारती व पिता वेदधर्म से सम्बंधित पर्वों को भूल गये हैं, परम्परा, कानून, वेशभूषा, भाषा, शिक्षा, आचार व व्यवहार सब भूलकर दुष्ट अंग्रेजयित के ही रंग में रंग गये हैं। उसी लुटेरी के भाषा, वेशभूषा, शिक्षा, कानून, परम्परा व आचार व्यवहार को अपना कर अपने को प्रबुद्ध व प्रगतिशील मानने की मूर्खता कर रहे हैं। आज मध्यरात्रि को नये ईस्वी सन् के स्वागत में पार्टियां होंगी, मदिरा के दौर चलेंगे, अश्लील व कामुक नृत्य व आतिशबाजी होगी। दीपावली पर चिल्लाने वाले न्यायाधीश व पर्यावरणवादी कोई बोलने का साहस नहीं करेगा। कोई यह भी नहीं सोचेगा कि 1 जनवरी को क्या हुआ था?
ईस्वी सन् के मद में मस्त हे भटकते देशवासियो! जरा मेरे कुछ प्रश्नों के उत्तर तो दे दो-
(1) 1 जनवरी को कौनसी घटना घटी थी, जिसका सम्बंध भारत देश व माँ भारती से है?
(1) 1 जनवरी को कौनसी घटना घटी थी, जिसका सम्बंध भारत देश व माँ भारती से है?
(2) इस घटना का मानव समाज से क्या सम्बंध है?
(3) क्या इसका सम्बंध किसी प्राकृतिक घटना वा सृष्टि आदि से है?
(4) क्या इस घटना से सम्बंधित समाज ने इस देश वा संसार पर कोई उपकार किया है?
अपने को बड़ा बुद्धिवादी मानने वाले महानुभावों को मैं ज्ञानयुद्ध के लिए आमन्त्रित कर रहा हूँ और साथ ही पूछ रहा हूँ कि इस अंग्रेजी कुसभ्यता वाले समाज ने हम पर कोड़े बरसाये, गोलियों से भूना, जेलों में निर्मम यातनाएं दीं, हमारी धन सम्पत्ति लूट ली, हमारी शिक्षा व सभ्यता को नष्ट कर दिया, हमारी माँ को बन्धक बनाया, उसी अंग्रेजयित के नव वर्ष के स्वागत में आप क्यों मदमस्त होकर नाच रहे हो? यह मूर्खता किसे प्रसन्न करने के लिए कर रहे हो? जरा अपनी विधवा माँ भारती के हाथ व पैरों में पड़ी हथकड़ी व बेड़ियों को तो देखो, वह पुकार-2 कर तुम्हारी ओर कातर दृष्टि से देख रही है और तुम इतने क्रूर बन गये कि अपनी माँ को छोड़कर लुटेरी विदेशी महिला को माँ मानकर पूज रहे हो। अहो! इससे बड़ी लज्जा की बात क्या होगी? अरे उस लुटेरी ने अनेक देशों को लूट कर, उन्हें दास बनाकर इस वर्ष को सम्पूर्ण संसार पर थोप दिया। उसे मानना यदि अन्तर्राष्ट्रिय विवशता है, तो भी उसके स्वागत में अपने स्वाभिमान को कुचलकर मदिरा व नृत्य का आजोयन क्यों? आतिशबाजी कर पर्यावरण विनाश का पाप क्यों? बोलो! मेरे देश के राजनेताओ! ब्यूरोक्रेट्स, सामाजिक कार्यकर्त्ताओ! धर्माचार्यो! बुद्धिजीवियो! छात्र-छात्राओ! बच्चो! किशोर-किशोरियो! युवक-युवतियो! वृद्ध-वृद्धाओ! अपने हृदय में झांक कर देखो, अपने मस्तिष्क की गहराइयों से सोचो! क्या आप उसी पागल व दास युवक की भाँति मूर्खता नहीं कर रहे हैं? अहो! मैं आपका आहवान करता हूँ। आओ! अपने धर्म व राष्ट्र के प्रति कर्त्तव्य को पहचानो। सबका आदर करो परन्तु अपने आत्मा का निरादर करके नहीं।
✍️ आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक