हे राम...


कल दूरदर्शन पर सर्वोच्च न्यायालय (?) के उस निर्णय, जिसमें विवाहेतर सम्बन्ध (व्याभिचार) को अपराध मुक्त घोषित किया है, का हृदय विदारक समाचार सुनकर दंग रह गया। तभी से बेचैनी रही कि कहीं इस देश को नष्ट करने के पीछे कोई घातक षड्यन्त्र तो नहीं चल रहा है, जिसने न्यायालय, संसद, मीडिया सभी को अपने जाल में फंसा रखा है। कभी ‘लिव इन रिलेशन’, कभी ‘समलैंगिकता’, तो अब यह धूर्ततापूर्ण निर्णय। उधर संसद द्वारा कभी शाहबानो तो कभी SC/ST Act पर किए गये फैसले, कहीं गो आदि पशुओं की निर्मम हत्या, तो कहीं भारतीय इतिहास व वेदादि शास्त्रों की अपनों ही द्वारा भर्त्सना।
         अहो! यह कैसी स्वतन्त्रता है, जहाँ प्रत्येक आदर्श का दम घोंटा जा रहा है, हर न्यायसंगत बात को आसुरी से भी निकृष्ट कानूनों द्वारा कुचला जा रहा है, जाति व सम्प्रदाय के नाम पर शासकीय व सामाजिक भेदभाव (आरक्षण व छूआछूत) के द्वारा समाज को नष्ट किया जा रहा है। महिला-पुरुष, माता-पिता व सन्तान, निर्धन-धनी, शहरी व ग्रामीण, सबके बीच खाई खोद कर सामाजिक ढांचे को छिन्न-भिन्न किया जा रहा है। इधर कोर्ट लगातार ब्रह्मचर्य व सदाचार की गौरवशाली परम्पराओं को एक-2 करके जीवित जला रहा है।
       हे राम! आप तो मर्यादा पुरुषोत्तम एवं वेदवेदांग विज्ञान के महान् ज्ञाता भगवत्स्वरूप थे, परमपिता परमात्मा की पावन गोद में सदैव रमण करने वाले सम्पूर्ण प्राणी-जगत् के परिपालक व रक्षक थे। आपने उस समय के दुष्ट रावण, जो वर्तमान नेताओं, न्यायाधीशों व अन्य कथित प्रबुद्धजनों व कथित राष्ट्रभक्तों से सैकड़ों गुना श्रेष्ठ था, तथा उसकी बहिन शूपर्णखा को उनकी स्वच्छन्द कामुक प्रवृत्ति के लिए दण्ड दिया था, परन्तु आज हे राम! आपके इस अभागे राष्ट्र में त्रेतायुग के राक्षसों से कई गुने भंयकर व कामी राक्षसों का निर्लज्ज ताण्डव हो रहा है।
         आज द्वापर के दुःशासन, दुर्योधन, शकुनि व कर्ण की चौकड़ी द्वारा पतिव्रता रजस्वला धर्मराज युधिष्ठिर की धर्मपत्नी (केवल धर्मराज की, न कि पांचो पाण्डवों की) महारानी द्रौपदी का चीरहरण हुआ था परन्तु आज तो सब ओर यह चौकड़ी कुण्डली मारे दिखाई दे रही है। उस समय तो एक व्यक्ति तो था, जो उन्हें तथा उस समय मूकदर्शक बने महापुरुषों को धिक्कार रहा था। आज वो ऐसा महात्मा विदुर भी नहीं दिखाई दे रहा। कोई चौकड़ी के सदस्य हैं, तो कोई घृतराष्ट्र, तो कुछ एक भीष्म, द्रोण व कृपाचार्य के समान विवश हैं।
        उस समय तो वैदिक धर्म के महान् संरक्षक योगेश्वर भगवत्पाद श्रीकृष्ण ने दुष्ट जनों को दण्ड दिया था परन्तु आज वे कृष्ण भी तो कहीं नहीं हैं। आज तो उन योगेश्वर को भी उनके ही नादान भक्तों के द्वारा कन्याओं के साथ नचाया व रास रचाया जा रहा है, उन्हें भी राधा का प्रेमी व गोपियों के साथ यौनाचार करने वाला बताया जा रहा है।
          हे मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम! तपस्वी महामना शम्बूक बध व गर्भवती देवी सीता जी को घर से निकालने के मिथ्या दोष तो आप पर भी आपके ही नादान भक्तों ने मढ़ दिये परन्तु भगवान् श्री कृष्ण, भगवान् शिव, देवराज इन्द्र, भगवान् ब्रह्मा आदि पूज्य भगवन्तों का चरित्र हनन तो घृणास्पद स्तर तक इनके ही नादान भक्तों ने पहुँचा दिया है। कोर्ट कभी-2 उस मिथ्या दोषों को वास्तविक इतिहास मानकर पापपूर्ण निर्णय दे रहे हैं और भविष्य में क्या होगा कौन जाने?
        हे वैदिक धर्म के महान् प्रतिपालक भगवन् श्री राम! कोर्ट व संसद के फैसलों से मेरे जैसा वेदानुरागी राष्ट्रभक्त एवं सम्पूर्ण विश्व को अपना परिवार समझने वाला बहुत आहत है। कल के फैसले से मेरा शरीर शिथिल हो रहा है, मस्तिष्क चकरा रहा है। मैं जिन कथित प्रबुद्धों को अपने वेदविज्ञान के द्वारा बौद्धिक दासता की बेड़ियों से मुक्त करना चाहता हूँ वे ही मेरे मूर्ख भाई आज कहाँ जा रहे हैं, उन्हें ये नये-2 कानून कुमार्ग पर ले जा रहे हैं। हे राम! नये-2 कानून व न्यायालयों के निर्णय आपके आदर्शों की हत्या कर रहे हैं। देश के रखवाले मूकदर्शक है।
         हे राम! इस देश की संस्कृति परायी स्त्री को माता समझती थी परन्तु आज यह क्या हो रहा है? जिस पतिव्रत धर्म के कारण भगवती देवी सीता, सती सावित्री, सती अनसूया, देवी रुक्मिणी जैसी महान् नारियां विश्व पूज्य रहीं। जिसके लिए रानी पद्मिनी व रानी कर्मवती जैसी अनेकों क्षत्राणियों ने अपने को अग्नि में आहुत कर दिया, आज हमारे न्याय के मन्दिर उस पतिव्रत व पत्नीव्रत धर्म की चिता जला रहे हैं अर्थात् ये कानूनवेत्ता वा कानून के रखवाले इन देवियों की हत्या कर रहे हैं।
           भगवान् मनु, महादेव शिव, भगवान् विष्णु, महर्षि ब्रह्मा, महर्षि भरद्वाज, महर्षि वसिष्ठ, महर्षि अत्रि, महर्षि अगस्त्य, महर्षि व्यास आदि हजारों के निर्मल चरित्र वाले वेदज्ञ वैज्ञानिकों का भारत, इक्ष्वाकु, मान्धाता, हरिश्चन्द्र, रघु, राम, दुष्यन्तपुत्र भरत जैसे अनेक महान् धर्मात्मा राजपुरुषों का भारत, महर्षि परशुराम, महावीर हनुमान्, भीष्म पितामह, आद्य शंकराचार्य एवं महर्षि दयानन्द जैसे अखण्ड ब्रह्मचारियों का भारत, महात्मा बुद्ध व महावीर स्वामी जैसे वीतराग पुरुषों व अपाला, गार्गी, घोषा, लोपामुद्रा, मैत्रेयी जैसी विदुषियों का देश आज अपने ही काले अंग्रेज बने पुत्रों से पग-2 पर हार रहा है। वास्तविकता तो यह है कि हमारा प्यारा भारत मर गया है और उसके शव पर खडे़ होकर क्रूर, कामी, पापी इंडिया निर्लज्ज नग्न नृत्य कर रहा है।
             हे भगवन् राम! आज आपके कथित भक्त, हिन्दू-हिन्दू का जाप करने वाले संगठन, राजनैतिक दल सब मौन हैं। कोई कहीं आन्दोलन नहीं हो रहा। इस फैसले को बदलने के लिए कोई सोच भी नहीं रहा है। बात-2 में आन्दोलन व अराजकता फैलाने वाले आज क्यों शान्तिपूर्वक आन्दोलन नहीं करते? हाँ, अराजकता फैलाना तो राष्ट्र के प्रति द्रोह जैसा होता है परन्तु शान्तिपूर्वक आन्दोलन करना देश के प्रत्येक जागरूक नागरिक का धर्म है। आज आवश्यकता इस बात की है कि स्वयं को भारतीय, आर्य वा हिन्दू कहने पर गर्व करने वाला (महिला वा पुरुष) राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व सभी दलों के नेताओं को लगातार पत्र लिखकर दबाव बनाये, जिससे यह पिशाचों जैसा निर्णय वापिस लिया जा सके। कोर्ट से तो केवल पुनर्विचार की अपील ही की जा सकती है, जो सभी सक्षम नागरिकों को करनी ही चाहिए।
            मैं तो आप सबको जगा ही सकता हूँ, मैं ऐसे कामी निर्णय करने वालों से कोई याचना नहीं कर सकता।
           हे राम! अब कोर्ट में आपके मंदिर बनने पर सुनवाई होनी है। इस देश की कथित रामभक्त जनता की आपके मंदिर बनाने की इच्छा है परन्तु आपके निर्मल चरित्र के विनाश पर उनके हृदय में कोई हल-चल नहीं है। यह जनता चित्रों व मूर्तियों की पूजा को ही धर्म समझ रही है और ब्रह्मचर्य, सदाचार, प्रेम, करुणा जैसे वैदिक वा मानवीय मूल्यों से इनको कोई प्रेम नहीं रह गया है। आज कामुकता, हिंसा, वैर, दर्द, प्रतिशोध, अहंकार, द्वेष की अनिष्ट तरंगों से सम्पूर्ण आकाश व मनस्तत्त्व दूषित हो चुका है। इसी के कारण सम्पूर्ण विश्व में भयंकर चक्रवात, तूफान, भीषण गर्मी, दावानल, भूकम्प, सुनामी, बाढ़ व सूखा जैसी आपदाओं के साथ-2 नाना प्रकार के अपराधों में सतत वृद्धि हो रही है और इन पापों के कारण अभी और अधिक त्रासदी आयेगी।
            हे मेरे प्यारे देशवासियो! यदि आपका हृदय पत्थर का न हो और आपके अन्दर श्री राम के प्रति कुछ भी भक्ति शेष बची हो, तो मेरे इस लेख पर कुछ तो विचार करो। कोर्ट के निर्णय पर कुछ तो आंसू बहाओ, अपनी कुम्भकर्णी नींद से कुछ तो जगो, अन्यथा ईश्वर आपको कभी क्षमा नहीं करेगा। हमारे महान् पूर्वजों की स्मृतियां आपको धिक्कारेंगी। उठो! ऋषि-मुनियों के महान् वंशजो! अपने आत्मगौरव को जगाओ, माँ भारती व वेदमाता के दर्द को पहचानो, अपने धर्म व कर्त्तव्य को समझो। इसे, यदि कोई कथित प्रबुद्ध (वास्तव में बौद्धिक दास) धर्म, ईश्वर, वेद, ऋषियों व देवों का उपहास करने का दुस्साहस करे और आप उसका तर्कसंगत उत्तर न दे सकें, तो आप ऐसे अहंकारी कथित प्रबुद्ध (वास्तव में बौद्धिक दास) को मेरे पास लेकर आ सकते हैं और वह मेरे से ज्ञान युद्ध कर सकता है।
            हे श्री राम! आप तो इस समय मोक्षधाम में परमपिता परमात्मा की अमृतमयी गोद में विचरण कर रहे हैं, इधर आपके नादान भक्त आपको परमात्मा का अवतार मानकर यही सोचते हैं कि अधर्म बढ़ने पर आप अवतार लेंगे। भला, इससे अधिक और क्या अधर्म बढे़गा? ये महानुभाव अन्धश्रद्धा से अकर्मण्य होकर सैकड़ों वर्षों से हाथ पर हाथ धरे बैठे सारे पापों को सह रहे हैं। हाँ, यदि कोई इस अन्धश्रद्धा से जगाता है, तो उसको ही अपना शत्रु समझ बैठते हैं। मैं परमपिता परमात्मा से प्रार्थना करता हूँ कि वे इन कथित रामभक्तों में सच्ची ईश्वर पूजा का भाव जगा कर आप श्री राम का सच्चा अनुयायी बनने के साथ-2 देश के न्यायाधीशों, वकीलों तथा सभी प्रबुद्ध जनों को न्यायशील बनने की सद्बुद्धि व शक्ति प्रदान करें।



✍️ आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक

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