वैदिक विज्ञान की ओर - 8


               वर्तमान विज्ञान तकनीक की सुविधाओं एवं गणित की सीमाओं से परे कुछ नहीं विचारता। समय के साथ वह तकनीक व गणित का नूतन आविष्कार वा विस्तार करने का प्रयत्न कर रहा है। इस कारण उसके प्रेक्षण व परीक्षणों का सामर्थ्य भी बढ़ रहा है और इससे उसके निष्कर्ष भी निरन्तर परिवर्तित होते जा रहे हैं। मैं जब वैज्ञानिकों से इस पर चर्चा करता हूँ, तो वे इसे विज्ञान की शक्ति व dynamics कहते हैं। किसी का dynamic होना अर्थात् सत्य की ओर निरन्तर अग्रसर होना तो अच्छी बात है परन्तु भूल करने, सुधरने फिर भूल करने की श्रंखला पर गर्व करने जैसा कुछ विशेष नहीं हैै। इसका कारण यह है कि वर्तमान विज्ञान दार्शनिकों की तार्किकता व ऊहा पर व्यंग्य करता है। 
            वस्तुतः यथार्थ तर्क व ऊहा के अभाव में प्रयोग, प्रेक्षण व गणित भी यथार्थ निष्कर्ष देने में अनेक बार असफल ही होते हैं। यदि वैज्ञानिक मेरे कथन को स्वीकार न करें, तो मैं जानना चाहूँगा कि इन साधनों के रहते भी cosmology के विभिन्न मॉडल क्यों प्रचलित हैं? सभी पक्ष अपने-2 मॉडल को सत्य सिद्धान्त कहते हैं। क्या एक ही विषय में अनेक विरोधी तथ्य सत्य हो सकते हैं? यदि ऐसा मान लिया जाये, तब विज्ञान का कोई अर्थ नहीं रहेगा? पता नहीं क्यों संसारभर में यह स्वच्छन्दता विज्ञान के नाम पर भी चल रही हैै। मैं संसार के वैज्ञानिकों से निवेदन करना चाहूँगा कि वे मेरे इस मत पर भी विचार करें कि परस्पर विरोधी सिद्धान्त व निष्कर्षों में से कोई एक निष्कर्ष व सिद्धान्त ही वैज्ञानिक सत्य हो सकता है, सभी नहीं। जरा, विचारें कि वर्तमान विज्ञान कहीं मार्ग से कुछ भटक तो नहीं रहा? यदि हाँ, तो जानने का प्रयास करें कि वर्तमान अनुसंधान प्रणाली में क्या संशोधन होना चाहिए? मेरा वैदिक विज्ञान इस विषय में आपको पर्याप्त मार्गदर्शन दे सकता है। हाँ, मेरे इस लेख का तात्पर्य यह कदापि न समझा जाए कि मैं प्रेक्षण, प्रयोग व गणित की आवश्यकता को नकार रहा है, नहीं मेरा ऐसा यह कदापि नहीं है। मैं वैज्ञानिकों एवं उनके पुरुषार्थ व प्रयोग, प्रेक्षण व गणित आदि साधनों का पूर्ण समर्थक हूँ परन्तु इनके आवेश में यथार्थ तर्क, ऊहा वा विवेक को तिलांजलि नहीं देनी चाहिए, यही मेरा निवेदन है।

क्रमशः .........


- आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक

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