वैदिक विज्ञान की ओर - 5


            वर्तमान में सभी सम्प्रदायों, मत-पन्थों से जुड़े प्रबुद्धजन आधुनिक भौतिक विज्ञान को प्रमाण मानकर ही पढ़ रहे हैं। ऐसा करने में उनकी मजहबी वा अन्य किसी विचारधारा की दीवारें कोई बाधा नहीं बनतीं, परन्तु वे ही महानुभाव अपने-2 पूजा-इबादत स्थल पर जाकर अथवा अपने समुदाय में बैठकर अपने-2 मजहब के अनुसार सृष्टि उत्पत्ति की कल्पित कहानियां सुनने व सुनाने लग जाते हैं। वे यह जानते हुए भी कि सृष्टि सम्बन्धी उनकी मजहबी मान्यताएं विज्ञान की दृष्टि से सर्वथा भिन्न एवं हास्यास्पद भी हैं। वे उच्च प्रबुद्ध बनकर भी अपनी मजहबी व पंथाई ग्रन्थों से ऐसे बंधे रहते हैं कि उनके विरुद्ध बोलने व सोचने की इच्छा नहीं रखते हैं और कोई ऐसा सोचते भी हैं, तो उनमें ऐसा साहस नहीं होता। यदि कोई साहस करता भी है, तो उस समुदाय के कट्टरपंथी, जो स्वयं विज्ञान के विद्वान् भी हो सकते हैं, उसे नाना क्लेश पहुंचाते हैं। 

          यह दुर्भाग्य हिन्दू (वास्तव में हिन्दू कोई समुदाय नहीं बल्कि नाना मत-पंथों का एक समुदाय है), मुस्लिम, ईसाई, यहूदी आदि सभी मत पंथों के साथ जुड़ा हुआ है। इनमें कोई कट्टर अधिक होता है, तो कोई कम परन्तु अज्ञानता का अंधकार सर्वत्र है। आज विश्व में इस्लामी आतंकवाद इसका ज्वलन्त उदाहरण है। कोई-2 किसी मत-पन्थ से अलग स्वयं को वामपन्थी कहते हैं। शोक है कि वे स्वयं को बहुत बुद्धिमान् प्रगतिशील मानते हैं, उनकी चर्चा सुनने से उनमें प्रगतिशीलता तथा खुला मस्तिष्क जैसा कुछ न होकर हठी व दुराग्रही अधिक दिखाई देते हैं। भारत में तो ये अपने देश को तोड़ने की बात करने को ही प्रगतिशीलता का लक्षण मानते हैं। 


मेरा मत है कि ऐसा केवल इसी कारण हो रहा है कि सृष्टि विज्ञान का यथार्थ प्रकाश अभी किसी के मस्तिष्क में नहीं हो पा रहा
 है।

क्रमशः........

- आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक

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