वैदिक विज्ञान की ओर — 20


विभिन्न सम्प्रदायों के अनुयायियों से आत्मनिरीक्षण का निवेदन करने के पश्चात् मैं उन महानुभावों, जो सभी सम्प्रदायों को एक सत्य का प्रतिपादक मानकर सर्वमतसमभाव की वकालत करते हैं, से भी विनम्र निवेदन करना चाहता हूँ-
1. क्या वे यह मानते हैं कि ईश्वर, जीवात्मा व कर्मफल व्यवस्था जैसे विषय केवल आस्थाओं पर निर्भर हैं? तब क्या इन पर आस्था न रखने से इनका अस्तित्व समाप्त हो जायेगा?

2. यदि इनका अस्तित्व हमारी आस्था पर ही आश्रित है, तब क्यों आस्था रखी जाए? न आस्था रहेगी और न मजहबी आडम्बरों में हमारा समय नष्ट होगा। इसके साथ ही मजहबों के नाम पर मानव-मानव के बीच दीवार भी खड़ी नहीं होगी।

3. क्या आपने सभी सम्प्रदायों के दर्शनों को गहराई से पढ़ा है? यदि नहीं, तो आप यह कैसे निर्णय कर लेते हैं, कि सभी सम्प्रदाय सत्य के प्रतिपादक हैं?

4. क्या भौतिक पदार्थों के विषय में ऐसा कोई कह सकता है कि इन पदार्थों का विज्ञान अनेक प्रकार का भी हो सकता है और वे सभी मत सत्य होंगे। क्या सूर्य, तारे, पृथ्वी, गैलेक्सी, फोटोन, कण, तरंग, जल आदि के पृथक्-2 विरोधी विज्ञान हो सकते हैं? तथा आप उन सभी विरोधियों को सर्वमत समभाव का उपदेश कर सकते हैं?
यदि ऐसा नहीं है, तब आध्यात्मिक विज्ञान के क्षेत्र में ऐसी मिथ्या बातें क्यों की जाती हैं? क्यों सभी मतों का निष्पक्ष अध्ययन करके एक सत्य मत के ग्रहण का प्रयास नहीं किया जाता?

क्रमशः ………
आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक

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